मेघालय के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक का 79 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। वे लंबे समय से बीमार चल रहे थे और दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके निधन से राजनीति और खासकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में शोक की लहर दौड़ गई। वे सिर्फ एक राजनेता नहीं थे, बल्कि जाट समाज की बुलंद आवाज थे।
❖ Satyapal Malik: शुरुआती जीवन और शिक्षा
सत्यपाल मलिक का जन्म जुलाई 1946 में उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के हिसावदा गांव में हुआ था। एक किसान परिवार में जन्मे मलिक ने मेरठ यूनिवर्सिटी से बीएससी और फिर कानून (LLB) की पढ़ाई की। पढ़ाई के दौरान ही वे छात्र राजनीति से जुड़ गए और मेरठ कॉलेज के छात्रसंघ अध्यक्ष भी बने।
❖ चौधरी चरण सिंह की छत्रछाया में राजनीति की शुरुआत
सत्यपाल मलिक ने 1970 में चौधरी चरण सिंह की पार्टी भारतीय क्रांति दल (BKD) से अपनी राजनीतिक पारी शुरू की। पहला चुनाव बागपत से जीता और पार्टी के मुख्य व्हिप बनाए गए। बाद में BKD का विलय लोकदल में हुआ और मलिक पार्टी के अखिल भारतीय महासचिव बने।
❖ Satyapal Malik की कांग्रेस में एंट्री और फिर बगावत
1984 में सत्यपाल मलिक ने कांग्रेस का दामन थामा और राज्यसभा में पहुंचे। 1986 में उत्तर प्रदेश कांग्रेस समिति के महासचिव भी बने। लेकिन जब 1987 में बोफोर्स घोटाले का मामला उभरा, तो मलिक ने कांग्रेस छोड़ दी और ‘जन मोर्चा’ नाम से अपनी पार्टी बना ली। जल्द ही इसका विलय जनता दल में हुआ।
❖ सत्यपाल जी की जनता दल में अहम भूमिका
1989 में वे अलीगढ़ से जनता दल के टिकट पर लोकसभा पहुंचे। उन्हें पार्टी का प्रवक्ता और सचिव नियुक्त किया गया और वे विश्वनाथ प्रताप सिंह के करीबी सहयोगी बन गए। उन्होंने कांग्रेस विरोधी लहर को जन-जन तक पहुंचाने में बड़ा योगदान दिया।
❖ भाजपा से रहा गहरा नाता
2004 में सत्यपाल मलिक भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए। बागपत से चुनाव लड़ा लेकिन हार गए। फिर भी पार्टी में उनकी भूमिका बढ़ती गई। वे उत्तर प्रदेश भाजपा के उपाध्यक्ष, किसान मोर्चा के राष्ट्रीय प्रमुख, और 2012 में भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बने। उन्होंने किसान आंदोलनों में पार्टी के पक्ष में जनसभाएं भी कीं। राज्यपाल के रूप में कार्यकाल
भाजपा सरकार ने उन्हें 2017 में बिहार का राज्यपाल बनाया। 2018 में वे जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल बने और 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 हटाने के दौरान वहां की जिम्मेदारी संभाली। इसके बाद वे गोवा और मेघालय के राज्यपाल भी रहे। उन्होंने अक्टूबर 2022 तक मेघालय में पद संभाला।
❖ विवादों से भी जुड़े रहे
राज्यपाल रहते हुए सत्यपाल मलिक कई बार सरकार की नीतियों पर खुलकर बयान देते रहे। वे किसान आंदोलन, भ्रष्टाचार और कई अन्य मुद्दों पर अपनी बेबाक राय रखते थे। यही वजह रही कि वे पद छोड़ने के बाद भी चर्चा में बने रहे। उनके नाम पर एक CBI जांच भी चल रही थी, जो निधन से कुछ महीने पहले सामने आई थी।
❖ अंतिम विदाई: किसान का बेटा, जननेता बनकर विदा हो गया
सत्यपाल मलिक का जीवन एक मिसाल है कि छोटे गांव से निकला व्यक्ति राजनीति के सबसे ऊंचे पद तक पहुंच सकता है। वे किसानों की आवाज बने, छात्र राजनीति से लेकर राज्यपाल पद तक पहुंचे और देश की राजनीति में अपनी अलग छाप छोड़ गए।